600 साल पुराना स्वर्ण मंदिर अपने साथ कई मिसालें समेटे हुए है। पूरी दुनिया में स्वर्ण मंदिर की पहचान केवल बड़े गुरुद्वारे के रूप में ही नहीं बल्कि इसमें दुनिया की सबसे बड़ी रसोई भी समाहित है। इस रसोई में बने व्यंजनों से हर दिन एक लाख लोग अपनी भूख मिटाते हैं। ऐतिहासिक दुखभंजनी बेरी के सामने स्थित है लगंर हॉल। दो मंजिला इस लंगर हॉल में दो हॉल हैं। इन हॉलों में एक समय में 1672 लोग भोजन करते हैं। 30 मिनट में 2344 लोग लंगर छकते हैं। चौंकाने वाले तथ्य यहां कर्मचारी तीन शिफ्टों में काम करते हैं। दाल बनाने वाली अलग टीम है, सब्जी बनाने वाली दूसरी टीम और चावल बनाने वाली तीसरी टीम। दुनिया के किसी भी कोने में इतनी मात्रा में फ्राइड राइस नहीं बनता है जितनी की स्वर्ण मंदिर की रसोई में। खीर बनाने वाली दुनिया की सबसे बेहतरीन टीम इस रसोई में है। एक समय में 75 किलोग्राम चावल का फ्राइड राइस बनता है। प्रसादा (रोटी) बनाने के लिए 35 बड़े तवे के इस्तेमाल किए जाते हैं। इसके अलावे रोटी बनाने के लिए एक अत्याधुनिक मशीन है। रोजना 16 क्विंटल दाल, 15 क्विंटल आटा इस रसोई में हर दिन 16 क्विंटल दाल, 9 क्विंटल सब्जी, 12 क्विंटल चावल और छह क्विंटल खीर बनती है। प्रसादा के लिए 15 क्विंटल आटा इस्तेमाल किया जाता है। सारी सामग्री तैयार करने के लिए एलपीजी के 100 सिलिंडर रोज खत्म होते हैं। स्टॉक में हमेशा 400 सिलिंडर होते हैं। पांच महीने का राशन स्टोर होता है। स्वर्ण मंदिर में रोजाना सवा लाख लोग दर्शन के लिए आते हैं। सुबह आठ बजे नाश्ते में चाय, बिस्कुट और रस मिलते हैं। फिर दो बजे लंगर में भोजन मिलते हैं। मुरादें हुईं पूरी तो हर दिन दो लाख रुपए का देने लगा दान